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स्त्री विभिन्न धर्मों की दृष्टि में women in different Religions

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मनुष्य सभी प्राणियों में सर्वोच्च है और इस कुलीनता के श्रेय नर व नारी दोनों ही हैं , इनके बीच आपसी सहयोग का एक ऐसा रिश्ता स्थापित है जिस के टूट जाने से जीवन प्रणाली अस्पष्ट व तितर बितर हो जाता है और उनके निर्माण का असली उद्देश्य खत्म हो जाता है । इसलिए इस्लाम धर्म ने उनके अस्तित्व और विकास के लिए निकाह का व्यवस्था बनाया जो नर व नारी के बीच प्रेम और स्नेह और आपसी मैटर्स में समझौता और एकता का बहुत बड़ा स्रोत है और साथ ही यह मनोवैज्ञानिक आनंद का एक वैध तरीका भी प्रदान करता है और विवाहित जीवन गुजारने के कुछ ऐसे नियम बनाए जिसकी पाबन्दी दोनों के लिए जरूरी है और जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दोनों ही के हक़ में फायदेमंद हैं। न नर नारी से पिछा छुड़ा सकता है और न ही नारी नर से , और सामुदायिक जीवन की आवश्यकता भी यही है कि हर एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल हों और जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने में एक-दूसरे की मदद करें। यह सत्य है कि इस्लाम ने पारिवारिक जीवन के नियम-कानून लोगों के सामने प्रस्तुत किया , यह वह समय था जब विवाह का मुख्य उद्देश्य ही समाप्त हो गया था, इस नाजुक कली ( स्त्री ) पर हर तरफ से अत्याचार हो रहा था, हालांकि यह वही मनुष्य थे जिन्हें भाईचारे और प्रेम का सन्देश दिया गया था, लेकिन अपनी अज्ञानता के कारण इस सन्देश का अर्थ व उद्देश्य भूलकर वह अपने दुसरे भाग ( स्त्री ) के प्रति क्रुर व कठोर दिल वाला जानवर बन गया और उसके लिए नरमी-कठोरपन का कोई नियम-कानून नहीं था। मवेशियों और अन्य सामानों की तरह महिलाओं को भी कमाईं का साधन बनाया गया। इस्लाम के आगमन से पहले भी दुनिया में महिलाएं और पुरुष थे, आर्य समाज भी था, आर्य समाज के सिवा और भी बहुत से समाज थे। जिस युग में एक ईश्वर की पूजा न होकर केवल काबा के अन्दर 360 बुतों व देवताओं की पूजा की जाती थी, उस समय एक महिला की क्या स्थिति थी ? महिला किस दृष्टि से देखी जाती थी ? आइए यह जानने के लिए विभिन्न देशों और विभिन्न धर्मों की कथनी-करनी और विचारों का परीक्षण करते हैं। सदियों पहले के इतिहास का अध्ययन करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि मानव जगत में स्त्रियों की क्या स्थिति थी ? तथा लोगों की दृष्टि में स्त्रियों का क्या सम्मान था ?

युनान ( ग्रीस, Greece ) और महिला

एक युनानी इतिहासकार महिलाओं के बारे में लिखता है “ युनान में पिता को कानूनी और अवैध पुरा अधिकार था जिस तरह से चाहते लड़कियों को अपने काम में लाते, उनका रेप के साथ साथ बेचने में भी नहीं हिचकिचाते ”। इसी तरह से एक और इतिहासकार कहता है कि “ युनानीयो का यह आस्था था कि महिला ही तमाम मुसीबत और दुःख की जड़ है ” एक और लेखक का कहना है कि “ महिला दो जगह पर पति के लिए ख़ुशी का सामान होती है, एक तो विवाह के दिन और दुसरे मृत्यु के दिन ”। उनकी नजर में औरतों की कोई कीमत नहीं थी कभी सम्पत्ति समझीं जाती तो कभी मुसीबत और परेशानी की वजह तो कभी दुःख की देवी, इसलिए सुकरात कहता है कि “ औरत फितना व फसाद की प्रतीक है, इस से ज्यादा फसाद की कोई चीज इस संसार में मौजुद नही, औरत एक ऐसा पेड़ है जो ज़ाहिरी ऐतेबार से खुबसूरत है मगर जब कोई चिड़िया इस फल को खालेती है तो तुरन्त मर जाती है।

युरोप ( Europe ) और महिला

जब हम युरोप के इतिहास का अध्ययन करते हैं तो यह असलियत सामने आती है कि युरोप जो ज़ाहिरी ऐतेबार से समानता का बहुत बड़ा दावेदार है इस्लाम के आगमन से पहले समानता से बिल्कुल ही अज्ञात और अक्षम था। आधुनिक समय में पश्चिमी सभ्यता ( Western civilization ) बड़े जोर-शोर से विकास की तरफ बढ़ती जा रही है, परन्तु कुछ समय पहले इसका इतिहास इतना भयानक था कि इसका अध्ययन करने से उनकी अज्ञानता का पता चलता है। महिलाओं को यह अधिकार प्राप्त था कि महिला उत्पीड़न की शिकार थी उनके कानून के अनुसार पति के जिम्मा भरण-पोषण नही था, हर पुरुष महिला के खिलाफ कुछ कह और कर तो सकता था परन्तु महिला को शिकायत करने की अनुमति नहीं थी और पुरुष को महिला का मालिक माना जाता था, महिला नौकरानी के रूप में रहती थी। अगर कोई पुरुष महिला पर ज़ुल्म व हिंसा करता तो कुछ नहीं होता परन्तु यदि कोई स्त्री अपने पति की तनिक भी आज्ञा का उल्लंघन करती तो उसे जला देने की अनुमति थी ।

रोम ( Rome ) और महिला

रोम भी विधान में युरोप के सामान था। यहां भी महिला को तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता था, मनुष्य उसे अपनी सम्पत्ति समझ कर उस पर ज़ुल्म कर के शासन करता था, पिता अपनी लड़कियों की शादी जहां चाहता कर देता था, पति अपनी पत्नी को घर से निकालने पर कादीर था यहां तक कि पत्नी को कत्ल भी कर देता तो कोई जांच नहीं होती थी। सदियों तक तलाक का कोई नामोनिशान नहीं था जिससे महिला अपने ज़ालिम पति से मुक्ति हासिल कर सके । सरकार के अनुसार महिलाओं का कोई महत्व नहीं था, यदि वह किसी मामले में गवाही देती तो उन्हें अयोग्य घोषित कर के उनकी गवाही को रद्द कर दिया जाता, यह और बात है कि कुछ दिनों बाद महिलाओं के अधिकार को बहाल कर दिया गया लेकिन इसके बावजूद उन्हें पुरषों की तुलना में नीच और हीन समझा जाता था।

अरब और महिला

अरब, जिन्हें अपने साहित्य और कला पर बहुत गर्व था, ग़ैर अरबों ( विदेशी, Non-arab ) को अपनी तुलना में मुर्ख समझते थे। दूसरों की तरह वे भी वैवाहिक जीवन के नियमों से अपरिचित थे। वे महिलाओं के अस्तित्व को अपमानजनक समझते थे, उनके अनुसार लड़कियों का जन्म दुख और शोक का प्रतीक था। जिस खानदान या कबीले में लड़की का जन्म होता था उसे अपमानजनक माना जाता था उनके अस्तित्व से सम्मान और कुलीनता का झंडा गिर जाता था, उनके लिए महिलाओं का कोई महत्व नहीं था। हज़रत उमर रजि अल्लाहु अन्हो कहते हैं कि “ واللهِ إنْ كُنّا في الجاهِلِيَّةِ ما نَعُدُّ لِلنِّساءِ أمْرًا، حتّى أنْزَلَ اللهُ فِيهِنَّ ما أنْزَلَ، وقَسَمَ لهنَّ ما قَسَمَ ” अल्लाह की कसम ! जाहिलीयत के समय में हमारी नजर में औरतों के लिए कोई सम्मान नहीं था यहां तक कि अल्लाह ने वह अहकाम उतारे जो उतारना था और औरतों को अधिकार दिये जो उन्हें देना था ( सहीह अल-बुखारी 4913 ) किसी खानदान में अगर कोई लड़की जन्म लेती तो अपने क्रुरता और बुरे चरित्र के कारण मासूम लड़कियों को ज़िन्दा दफ़न कर देते थे, कुरआन ने उनकी कठोरता को बताते हुए कहता है कि “ وَإِذَا الْمَوْءُودَةُ سُئِلَتْ بِأيّ ذَنْبٍ قُتلَتْ ” जब ज़िन्दा दफ़न की गई लड़कियों से सवाल किया जाएगा कि किस अपराध की वजह से उन्हें दफ़न किया गया है ( सुरह तकवीर 8,9 ) यदि कोई जीवित भी होता तो उसे जीवन के सभी अधिकारों से वंचित कर दिया जाता, न तो विवाह की कोई व्यवस्था थी और न ही तलाक के लिए कोई कानून था। महिलाओं का विरासत में कोई हिस्सा नहीं था, परन्तु जब इस्लाम आया तो सम्पत्ति में उसका हिस्सा तय किया तो अरबों को बहुत आश्चर्य हुआ। क्योंकि महिलाओं को मानवता के दायरे ( Circle ) से हटा कर जानवरों और इंसानों के बीच एक तीसरी प्राणी माना जाने लगा था।

हिंदू धर्म और महिलाएं

अगर हम भारत के इतिहास का अध्ययन करें तो पता चलता है कि इस्लाम के आने से पहले यहां के लोग महिलाओं के साथ जो व्यवहार करते थे वो भी रोंगटे खड़े कर देने वाले थे। इतिहास से पता चलता है कि हमारे देश में महिलाओं के पैदा होते ही जिंदा दफन नहीं किया जाता था, बल्कि उनको पाल-पोस कर जवान करते थे उसका कन्यादान किया जाता, विवाह होता, पत्नी अपने पति के घर जाती और अगर दुर्भाग्य से पति की मृत्यु हो गई, अब बेचारी पत्नी विधवा हो गई अब उस औरत को जीने का कोई अधिकार नहीं था क्योंकि यह इतनी मनहूस है कि उसकी वजह से उसके पति की मृत्यु हो गई इसलिए उस महिला को भी उसके पति की चिता पर जलाकर सती कर देते थे ।
भारत की गणना उन देशों में की जाती है जिन्होंने अपने धार्मिक आदेशों को प्रकाशित और प्रचारित करने के लिए बहुत प्रयास और जतन किये लेकिन उनके विचार निराधार और खोखले साबित हुए जिसके कारण वे टिक नहीं सके। इनमें हिंदू धर्म भी शामिल है, जिसे खुद पर बहुत गर्व था कि हम शांति और सुरक्षा के पैरोकार हैं, लेकिन महिलाओं के बारे में उसके विचार और अवधारणाएं इतनी घृणित हैं कि स्पष्ट शब्दों में कहा जा सकता है कि उनमें शांति और सुरक्षा की नहीं बल्कि बुराई और भ्रष्टाचार की गंध आती है। उन्होंने महिलाओं को कभी शांति नहीं दी और उन्हें गुलामी की जंजीरों में जकड़ कर रखा। किसी भी हालत में उन्हें आज़ादी नहीं मिली. भारत के एक प्रसिद्ध व्यवस्थापक महिलाओं के बारे में लिखते हैं कि “एक महिला बचपन में अपने पिता के अधीन होती है, जवानी में अपने पति के अधीन होती है और विधवा होने के बाद अपने पुत्रों के अधीन होती है। कभी स्वतंत्र नहीं रह सकती ” नारी को भाग्य, तूफ़ान, मौत, नर्क और ज़हरीले साँप से भी बदतर माना जाता था। स्त्री, चाहे वह नाबालिग हो, जवान हो या बूढ़ी, घर में स्वतंत्र रूप से कोई काम नहीं कर सकती थी (मनोस्मृति 5/1470)। भारतीय सरकार का संविधान महिलाओं के बारे में इस प्रकार था: “नदी, सशस्त्र सैनिक, पंजे और सींग वाले जानवर, राजा और महिलाओं पर भरोसा नहीं करना चाहिए (चाक नीति 1/15)। झूठ बोलना, बिना सोचे-समझे काम करना, धोखा, मूर्खता, लालच, अशुद्धता, क्रूरता महिलाओं के प्राकृतिक दोष हैं। राजकुमारों से तहजीब सीखनी चाहिए, विद्वानों से नम्रता, जुआरियों से झूठ और स्त्रियों से छल (चाक नीति 12/18)। मानों मानवता की दुनिया में औरतें सबसे अपमानित वर्ग में गिनी जाती थीं।

यहूदी धर्म ( Judaism ) की नजर में महिला

यहूदी कहते हैं कि स्त्रियाँ मक्कार और धोखेबाज होती हैं। अत: यह उसके धोखे का ही परिणाम है कि हम इस संसार में कठिनाई और कष्ट सहकर जीवन व्यतीत कर रहे हैं। यदि हव्वा ने आदम को धोखा न दिया होता तो वह स्वर्ग में रहते और हम इस सांसारिक समस्याओं से सुरक्षित रहते। हव्वा ने आदम को बहकाकर एक अपराध किया, जिसके लिए हव्वा को पैदाइश का दर्द सहना पड़ा और यह सिलसिला क़यामत तक जारी रहेगा। यह ऐसा है जैसे अल्लाह ने पुरुषों को महिलाओं पर श्रेष्ठता दी है, इसलिए एक महिला एक पुरुष के अधीन रहेगी और किसी भी स्थिति में उसके लिए पुरुषों की आज्ञाकारिता आवश्यक होगी, अन्यथा उसे दंडित किया जाएगा। इस क्रूरता और दुर्व्यवहार के साथ-साथ समाज में उसका कोई मूल्य नहीं था, यहाँ तक कि वह अपने बच्चों को भी ज्ञान नहीं दे सकती थी। घरेलू मामलों की सारी शक्तियाँ पुरुष को हासिल थीं जिस तरह से चाहे घर की देखभाल करे । स्त्री घर में नौकरानी का काम करती थी, स्त्री को संपत्ति में भी कोई अधिकार नहीं था। इसलिए, उनके यहाँ पुरुष उत्तराधिकारी थे। महिला को विरासत से वंचित कर दिया गया।

ईसाई धर्म ( Christianity )की नजर में औरत

अन्य झूठे धर्मों की तरह, ईसाई धर्म में भी महिलाओं पर अत्याचार किया गया और उनके सभी अधिकारों को छीन लिया गया और उन्हें अपमानित किया गया और महिलाओं को हर विपत्ति का कारण घोषित किया गया। तरतोलियानी नामक ईसाई का इमाम औरतों के बारे में लिखता है कि “ औरत शैतानी दरवाजा, वही आदम को बहकाने वाली, खुदा के कानून को तोड़ने वाली, और पुरषों को बर्बाद करने वाली है ” एक और ईसाई लिखता है कि “ औरत पुरुष के लिए मुसीबत और आफ़त है जो एक खुबसूरत शक्ल में मर्दों के सामने आती है ”।
इस्लाम को छोड़कर बाकी सभी धर्मों के विचार और विचार लगभग एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं। किसी ने हक़ छीना, किसी ने नौकरानी कहा, किसी ने कठिनाई और कष्ट का कारण बताया, किसी ने मृत्यु, नर्क और ज़हरीले साँपों की व्याख्या की, परन्तु इस्लाम ने خير متاع (अच्छी सम्पत्ति) कहकर इन सभी दुष्ट विचारों को रद्द कर दिया और इसे विकास और जीवित रहने का साधन बना दिया , क्योंकि इसकी सच्चाई इस्लामी शिक्षाओं के अध्ययन से स्पष्ट हो जाती है।

इस्लाम मे महिला का मुकाम

दुनिया में कोई भी व्यवस्था हो, चाहे वह धर्म से संबंधित हो या परिवार या देश से संबंधित हो। बहरहाल इसका गठन विचार और नजरियात पर आधारित है क्योंकि ये संदर्भ या स्रोत हैं, लेकिन इस्लाम ने महिलाओं के लिए जो अधिकार और शक्तियां व कर्तव्य निर्धारित किए हैं, वे किसी मानव मन की उपज नहीं हैं, बल्कि वे शरई नियमों और कानूनों पर आधारित हैं, जो समाज के भीतर संतुलन बनाते हैं और महिलाओं के सही और उचित महत्व और स्थिति को स्पष्ट करते हैं।
इस्लाम के आने से पहले महिलाओं को हीन और नीच समझा जाता था, लेकिन इस्लाम ने उन्हें सम्मान और गरिमा प्रदान की और उन्हें धर्म और जीवन पूरा करने का साधन बनाया, जैसा कि हदीस शरीफ में बताया गया है : “ إذا تَزَوَّجَ العبدُ فَقَدِ اسْتَكْمَلَ نِصْفَ الدِّينِ، فَلْيَتَّقِ اللهَ فيما بَقِيَ.” अल्लाह के आखिरी नबी मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, ने फ़रमाया : जब कोई व्यक्ति शादी करता है, तो वह अपने धर्म का आधा हिस्सा पूरा करता है, फिर उसे शेष आधे में अल्लाह से डरना चाहिए। उन्होंने औरत को मर्द के धर्म का आधा हिस्सा बताया और उसका दर्जा ऊंचा किया और उसे “ خير متاع الدنيا ” (दुनिया की अच्छी दौलत) का खिताब दिया। इस्लाम ने इस नाजुक कली (औरत) को जिंदगी का पैगाम देकर मौत से बचाया और उन पर होने वाले जुल्म और सितम को बंद किया और चंद शब्दों में बता दिया कि जो कोई भी उसे तकलीफ पहुंचाएगा, वह अल्लाह की नजर में जिम्मेदार होगा और कयामत के दिन उससे पूछ-ताछ होगी।
पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इन लड़कियों की परवरिश को जन्नत में प्रवेश का जरिया बनाया “ من عال جاريَتينِ حتى تُدركا دخلتُ الجنَّةَ أنا وهو كهاتينِ وأشار بإصبعَيه السَّبّابةِ والوُسطى وبابانِ مُعجَّلانِ ” यानी, जिसने दो लड़कियों को उनके जवानी के पहुंचने तक पाला, वह व्यक्ति और मैं स्वर्ग में एक साथ रहेंगे, और आपने अपने अंगुठे और बीच की उंगलियों से इशारा किया। ( सिलसिला अल-सहीहा 3/113 )
दुनिया औरत को पाप और बुराई का कारण समझती थी, लेकिन आपने इस औरत को प्यार और रहम की नजर से देखा और अपनी पसंद जाहिर की… “ حُبِّبَ إليَّ منَ الدُّنيا النِّساءُ والطِّيبُ ” दुनिया की चीज़ों में मुझे औरतें और ख़ुशबू पसंद है। ( अल-सहीह अल-मुसनद 106 ) क्योंकि इस्लाम ने हर तरह से महिला की रक्षा की और उसकी पवित्रता और सम्मान, गरिमा और महानता की रक्षा की।
युनान हो या रोम, अरब हों या विदेशी, यूरोप हो या एशिया, हर जगह महिलाओं पर अत्याचार होता था। अधिकांश देशों के कानून महिलाओं के पक्ष में ऐसे थे, जो उनके सम्मान और प्रतिष्ठा के विरुद्ध थे और इस्लाम के अलावा अन्य झूठे धर्मों के लिए महिलाओं का कोई मूल्य नहीं था, क्योंकि इन धर्मों के विचार इस बात के गवाह हैं।

हम अल्लाह ताला से प्रार्थना करते हैं कि हमें सही धर्म को समझने की क्षमता प्रदान करें, आमीन

Mohammad Ali Mohammad Muslim Al-Azmi
Qassim University , Saudia Arabia

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