जब अरब एक ही समय में कई अलग अलग धर्मों के ख़तरनाक भार तले दबे जा रहे थे, तो अचानक अप्रत्याशित ( गैर तवक्को ) के इस्लाम का सुरज उदय हुआ, और इस्लाम ने अरब को असहनीय बोझ से निजात दिलाई, यह अवसर अरब के लिए एक आश्चर्य और खुशी की वजह बनी, इस्लाम ने अरब में सच्चाई की रोशनी फैला दी यहां तक कि अरब के लिए यह कहना अनुचित ना होगा कि इस्लाम एक खुदाई नेमत ( God gift’s) से बढ़ कर साबित हुआ।
इस्लाम का अर्थ ( Meaning Of Islam )
इस्लाम एक अरबी शब्द है जो लफ्ज ” सलाम ” या” असलम ” से बना है, जिसका अर्थ ये है कि एक सत्य अल्लाह के सामने बिना किसी शर्त के नतमस्तक ( झुककर ) हो कर शांती प्राप्त की जाती है उसको इस्लाम कहते हैं, और हर वो व्यक्ति जो एक सत्य अल्लाह के सामने बिना किसी शर्त के नतमस्तक हो जाता है उसको मुस्लिम कहते हैं।
इस्लाम से पहले के हालत ( The Situation Before Islam )
इस्लाम का सूरज उगने से पहले दुनिया वाले शिर्क और कुफ़र के दलदल मे फंस चुके थे ईरान और इराक मे आग की पूजा की जा रही थी, हिंदुस्तान मे करोड़ों फर्जी देवी देवताओ , पेड़ , पत्थर , आत्मा , जिन , यह तक कि जानरों की भी पूजा की जा रही थी , और अरब का हाल तो ये था जीतने कबीले उतने धर्म और उस्से भी ज़्यादा खुदा , पथरो , जानवरों , पेड़ों , चाँद , सूरज , सितारे , की पूजा होती थी , फरिश्तों को अल्लाह की बेटियाँ मानते थे , शिर्क और बुतपरस्ती की नई नई सूरतें सामने आती , अल्लाह के घर काबा को बुतखाना बना दिया गया था। उनकी बुतपरस्ती की कहानी पढ़ कर आश्चर्य होता है कि इंसान आस्थे मे इस हद्द तक भी जा सकता है । एक पत्थर को पोंछ-पांच कर अपने सामान के साथ रख लिया , उसको पूजते रहे जब उस्से भी साफ और खूबसूरत पत्थर दिखा तो पहला फेक कर दूसरे को खुदा बना लिया , चूल्हा बनाने की जरूरत पड़ी तो उसे चूल्हे मे इस्तेमाल कर लिया खाना पक गया तो फिर पत्थर को साफ कर के खुदा बना लिया , पत्थर न मिला तो बालू और मिट्टी पर बकरी या ऊंट के दूध को दुह कर उसे थोड़ा सखत बना कर उसकी पूजा कर ली , पानी या दूध न मिल तो पेशाब कर के मिट्ठी को कडक बना कर उसकी पूजा कर लिया । तीरों पर हाँ या ना लिखा होता जिस तरह का तीर निकलता वही काम करते । खुराफात और भूत परेत पर इस तरह का आस्ता था कि आज का अक्लमंद इंसान उन्हे पढ़ने के बाद शायद अपनी हंसी न रोक सके । लड़की के जन्म को शर्म और बदनामी समझते और लोगों से अपने मुह को छुपाते फिरते थे कि लोग क्या कहेंगे कि उस के यहा लड़की पैदा हुई है , वो इस बोझ को अपने साथ नहीं रखना चाहता था तो एक ही रास्ता था वो अपनी लड़कियों को जिंदा धरती मे दफन कर देते थे और इस अजीरन ज़िन्दगी से छुटकारा पा लेते ।
दुनिया के किसी भी हिस्से मे जब भी कुफ्र-व-शिर्के का तूफान उठा अल्लाह ने उस हिस्से मे अपना नबी( Prophet ) भेज इस तरह अपनी अपनी कौम मे नबी आते रहे और अल्लाह का पैगाम ( message ) सुन कर रुखसत ( चले ) हो जाते , यहा तक कि वह वक्त आया जब पूरी दुनिया कुफ्र-व-शिर्क कि घनघोर घटाओ मे डूब गई थी , इसाईयों (Christan) ने ईसा अलैहिस्सलाम को अल्लाह का बेटा मान लिया, ईरानीयो ने आग की पुजा शुरू कर दी, जबकि अरब में बुतों की पुजा जा रही थी, लड़कीयों को जिन्दा धरती में गाड़ देते थे, लोग हर उस पाप और गुनाह में लथपथ थे जिसको अंजाम देने की ख्वाहिश और चाह रखते थे।
तुफान जितना बड़ा होता है उसके सामने बांध भी उतना ही बड़ा और जबर्दस्त बांधा जाता है. अब चूंकि पुरी के इस तुफान को रोकना था इसलिए आख़री नबी की जरूरत थी, जो उन्हें इस अन्धविश्वास व अन्धकार से बाहर निकाल कर रौशनी की तरफ खींचें।
बुतपरस्ती कि शुरुआत कब और कैसे हुई
हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के बाद जो नबी दुनिया मे आए वो नूह अलैहिस्सलाम हैं ये वो नबी हैं जिन्होंने तकरीबन 1000 वर्ष तक दावत-व-तबलीग़ का काम किया लेकिन उनकी बात को माननेवाले सिर्फ कुछ गिनती के लोग थे, बाकी लोग बुतपरस्ती कर रहे थे। सवाल ये है कि बुतपरस्ती कब, कैसे और कहा से शुरू हुई तो इसका जवाब ये है कि हज़रत नूह अलैहिस्सलाम के जमाने से पहले, कुछ बहुत ही नेक और अच्छे इंसान थे जब उनकी मृत्यु हुआ तो शैतान ने उनकी संतान को बहकाना शुरू किया और उन लोगों के दिलों में ये बात डालने लगा कि ये तुम्हारे बाप दादा बहुत ही अच्छे आदमी थे एक काम करो कि तुम लोग अपने बाप दादा की मूर्ति बना लो ताकि तुम उन्हे देख कर सकून हासिल कर सको तो उन्हों ने अपने बाप दादा की मूर्ति बना ली ये लोग मूर्ति को सिर्फ देखते थे उसकी पूजा नहीं करते थे । फिर उसके बाद जब इन लोगों के संतान का जन्म हुआ तो फिर शैतान ने इनके संतान को बहकना शुरू किया और उन लोगों के दिलों में ये बात डालने लगा कि ये जो मूर्ति रखी है ये तुम्हारे बाप दादा के हाथों बनाई हुई मूर्ति है और वो लोग इसकी पूजा करते थे तो तुम क्यू नहीं कर रहे तुम्हें भी इन मूर्तियों कि पूजा करनी चाहिए, तो वो लोग पूजा करना शुरू कर दिए और इस तरह से बुतपरस्ती कि शुरुआत हुई
पुराने जमाने के कुछ मशहूर बुत ( Some Famous Idols Of Ancient Times )
(1) लात : ” लात का अर्थ होता है सत्तू घोलने वाला ” ये एक ऐसा व्यक्ति था जो हाजियों को सत्तू घोल कर पिलाया करता था , बाद के दिनों में लोगों ने मुर्ति बनाकर पुजा करने लगे , लोग सोने से पहले इसी बुत कि क़सम खाया करते थे
(2) मनात : ये बुत बहुत पुराना था और लाल सागर (Red sea) के किनारे था , नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुकूम से हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने इस बुत को तोड़ दिया
(3) उज्जा : ये बुत मक्का से कुछ दूर नखला की वादी मे बबूल का एक पेड़ था जिसके नीचे उज्जा का एक थान था ,उज्जा का बुत काबा मे भी रखा हुआ था जिसे मक्का जीतने के बाद खालिद बिन वलीद रज़ियल्लाहु अन्हु ने अपने हाथों से तोड़ा।
(4) हूबूल : ये कुरैश का सबसे बड़ा देवता था , ये कुरैश को इंसानी सूरत मे मिला था जो लाल पत्थर से बनाया गया था , इसका दाया हाथ टूटा हुआ था कुरैश ने सोने का बनवा कर लगा दिया । कुरैश के लोग जंगों मे हूबूल की जय का नारा लगाते थे मक्का के जीत के मौके पर इसको भी हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु ने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुकूम से तोड़ दिया
(5) वद्द : ये बुत दौमतुलजन्दल मे था और बनू क्लब इस की पूजा किया करते थे
(6) सुवाअ : इस्लाम से पहले यनबू जो मदीना के करीब है वहां पर इस बुत की पूजा होती थी , इस बुत कि सूरत औरत कि थी ।
(7) यगुस : ये बुत यमन मे था और इसकी शक्ल शेर कि थी
(8) यवउक : यवउक का अर्थ होता है मुसीबतों को रोकने वाला , ये बुत यमन मे अरहब मे था और अरहब यमन की राजधानी सनआ से कुछ दूर मक्का कि तरफ था , और इस बुत कि शक्ल घोड़े जैसी थी
(9) नसर : यमन छेत्र मे नज्रान के लोग इसकी पूजा करते थे , आज कल नज्रान सऊदी अरब का शहर है जो यमन के सरहद पर है । और इस बुत की शक्ल गिद्ध जैसी थी।
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