पूरी दुनिया ज़ुल्म , चोरी चमारी , बुतपरस्ती , अय्याशी , के दलदल मे धँसती जा रही थी , थोड़ी थोड़ी सी बात पर चालीस चालीस साल तक जंगे होती रहती थी , एसे वक्त मे एक ऐसे नबी की जरूरत थी जो उन्हे अंधकार और हर तरह की बुराइयों से निकाल कर रौशनी और सीधे मार्ग की तरफ दर्शाये ; इस लिए अल्लाह ताला ने अपना आखरी नबी भेजा जो उन्हे पापों के दलदल से निकाल कर सीधा रास्ता दिखाए ।
अंतिम नबी (the last prophet )
इस तरह से अल्लाह ने आखरी नबी जिनका पूरा नाम मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम था भेजा , मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म मक्का के बहुत ही शरीफ घराने मे 20 या 22 अप्रैल 571 ईस्वी दिनांक सोमवार को हुई , उस्से कुछ दिन पहले ही आम अल फ़ील ( हाथी वाला घटना ) सामने आई , जिसके नतीजे मे कुरैश और कुछ बड़े लोग काबा के परदे को पकड़ कर मशहूर प्राथना की थी ” ऐ अल्लाह ; ” इंसान अपने घर की हिफाजत करता है तू अपने घर की हिफाजत खुद कर ले ” इसलिए अल्लाह ने अपने घर की हिफाजत उन हाथी वालों से किया। कई साल तक मक्का मे बुतपरस्ती बंद रही , ये इस बात की निशानी थी कि बुतपरस्ती और शिर्क जैसे पाप को इस दुनिया से मिटाने वाला जन्म ले चुका है ।
नबी के जन्म से कुछ महीने पहले ही आपके पिता का देहांत हो गया था ,अभी आप छह साल के ही थे कि आपके माता की भी मृत्यु हो गयी , इस लिए आपकी देख भाल आपके दादा अब्दुल मुत्तालिब करने लगे , आठ साल कि उम्र मे आपके दादा का भी देहांत हो गया जिसके बाद आपकी देख भाल कि जिम्मेदारी आपके चाचा अबू तालिब करने लगे उन्ही के साथ कारोबार करने लगे और जवान हो कर कारोबार के सिलसिले मे यमन , शाम , बहरीन , के छेत्र मे सफर किया , उस वक्त मक्का बल्कि सारे अरब में पढ़ने लिखने का रिवाज न था आप भी अनपढ़ थे । मक्का की एक मालदार औरत जिनका नाम खदिजा था आप की अमानतदारी का चर्चा सुनकर आपको अपने कारोबार मे जगह दी , और यही कारोबार शादी कि वजह बनी । उस वक्त आपकी उम्र 25 साल थी और हज़रत खदिजा कि उम्र 40 साल थी , आपकी सारी संतान इन्ही से हुई ,जिनमे से 2 बेटे और 4 बेटियाँ थीं ।
Revelation
आप बचपन से ही नेक और पाकीज़ा थे , पूरे अरब मे सादिक़ ( सच्चे ) और अमीन ( अमानतदार ) के लकब से मशहूर थे , शुरू से ही बुतपरस्ती , शराब , नाच गाना , मेला ठेला और वाहियात खेल कूद से बहुत दूर रहते थे ,अल्लाह ने कौम मे फैली हुई बुराइयों के खिलाफ आपके दिल नफरत डाल दी थी इसलिए आप किसी मुश्रीकाना काम मे भाग नहीं लेते थे , आप अकेले रहना पसंद करते थे और अक्सर मक्का की मशहूर पहाड़ी जिसका नाम हीरा है उसके अंदर जाकर ईबादत किया करते थे ,और आखिर मे 18 रमज़ान को इसी गुफा मे आपको पहले वही (Revelation ) प्राप्त हुवी ।
ये पहला मौका था कि आप एक फ़रिश्ते से मिले , अल्लाह के कलमे को बुलंद करने का समय आ गया , मर्दों मे सबसे पहले इस्लाम कबूल करने वाले हज़रत अबू बकर रज़ियल्लाहु अन्हु ( बाद मे पहले खलीफा ) हुए , औरतों मे हज़रत खदिजा रज़ियल्लाहु अन्हा हुईं , बच्चों मे हज़रत अली रज़ियल्लाहु अन्हु (बाद मे चौथे खलीफा ) हुए और गुलाम मे हज़रत ज़ैद बिन हरिसा रज़ियल्लाहु अन्हु ने हुए ।
इस्लाम का संघर्ष
दावात तबलीग़ के रास्ते मे बहुत सी तकलीफ़ें आई लेकिन आपने हिम्मत न हारी लोग अपने बाप दादा के आस्था और रस्म रिवाज को छोड़ने के लिए तय्यार न थे जैसे जैसे मुसलमानों की संख्या बढ़ती गई वैसे वैसे कुरैश का ज़ुलम भी बढ़ता गया यहा तक कि आपको मदीना हिजरत करना पड़ा ।
अब मक्का मे काफिर और मुश्रीक कि हुकूमत थी लेकिन दुश्मन सिर्फ वही लोग नहीं थे मदीना मे भी यहूद और मुनाफिक मुखालिफ थे । जंग-ए-बदर से तबूक तक एक लंबा सिलसिला चला , मक्का के काफिरों ने मदीना के यहूद और मुनाफीको के साथ मिल कर बार बार इस्लाम को मिटाने की कोशिश की , जंग बदर मे तीन सौ तेरह (313) बगैर हथियार के एक हजार (1000) से जियादा हथियारों से लेस मुशरीकों और कूफ्फरों को हराने के बाद हर जगह इनकी धाक बैठ गई , इस तरह से पूरे अरब मे ही नहीं बल्कि अरब से बाहर भी इस्लाम का बोलबाला होने लगा ।
आपके जीवन मे बहुत सारी मुश्किलें और परेशानियाँ आईं , बहुत सी जंगे और लड़ाइयाँ हुईं धीरे धीरे इस्लाम का झण्डा ऊंचा होता रहा और आखिरकार आपके जीवन मे एक एस मौका आया जहां पर अल्लाह ने कहा कि बस आज इस्लाम पूरा हो गया , अब आपके बाद कयामत तक कोई नबी आने वाला नहीं है आप ही सारी दुनिया के लिए हिदायत का सामान हैं जो आपके रास्ते पर चलेगा वो कामयाब होगा और जो आपके रास्ते पर नहीं चलेगा तो वो हमेशा बर्बाद और नाकाम रहेगा।
आपकी 11 पत्नियाँ थीं और 7 बच्चे जिनमे से 3 पुत्र जिनका देहांत छोटे पर ही हो गया था और चार पुत्रियाँ थी
आपने टोटल 63 साल की ज़िंदगी हासिल की , 40 साल पर आपको नुबुवत मिली और बाकी अपनी ज़िंदगी के 23 साल इस्लाम कि दावात मे गुजार दी , आखिरकार 12 रबीअव्वल 11 हिजरी दिनांक सोमवार के दिन आपका देहांत हुआ ।
पवित्र किताब ( The Holy Book )
अल्लाह ने मुख्तलिफ क़ौमों की हेदायात के लिए उन के बीच अपने पैगंबर भेजने के साथ साथ उन पर अपनी किताबें भी उतारता। ये किताबें पैगंबरों के बाद उनकी क़ौमों के लिए हिदायत का सामान रही है और उनसे वो अपनी ज़िंदगी के अलग अलग मुआमलात मे रहनुमाई हासिल करते रहे लेकिन वक्त गुजरने के साथ साथ उन पर लालच और ख्वाहिशात का इस कदर असर पड़ा कि वो अल्लाह की किताब मे हेर फेर करने लगे , जो तालीमात और अहकाम उनके मंशा या उनके मुताबिक नहीं होती थी उनको वो बदल कर अपने हिसाब से कर लेते थे ।
सबसे आखिर मे अल्लाह ताला ने हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को भेजा और साथ ही आप पर कुरान भी नाज़िल किया , लेकिन दूसरे आसमानी किताबों के मुकाबिले मे कुरान कि ते खसुसियत है कि अल्लाह ताला ने इसकी हिफाजत कि जिम्मेदारी का वादा कर रखा है ।
कुरान उतरने की शुरुआत रमजान कि आखरी दिनों से हुआ ,40 साल कि उम्र मे सूरह अलक क सुरुआती आयात से नजूल कि इब्तदा हुवी , पूरा कुरान आप पर 23 साल मे नजिल हुआ । कुरान करीम को महफूज रखने के लिए आप ने उसे लिखने का हुकूम दिया उस समय मे कागज नहीं थे , इस लिए साहबा एकराम मुखतलीफ़ चीजों पर लिखते थे जैसे पत्थर कि सीलों पर , जानवरों के चमड़े और हड्डियों पर , पेड़ों के छाल और पत्तों पर लिखा करते थे । कुरान को लिखने वाले बहुत से साहबा एकराम थे उन्मे से कुछ मशहूर जैसे ज़ैद बिन साबित , अली बिन अबी तालिब , उस्मान बिन अफ़फान , अब्दुल्लाह बिन मसूद , ज़ुबैर बिन औववाम , हज़रत मुआविया रज़ियल्लाहु अन्हुम हैं ।
कुरान मे 114 सूरतें हैं , जिनमे से ज्यादा मक्की हैं और कुछ मदनी है।